रायपुर। छत्तीसगढ़ आदिवासी स्थानीय स्वास्थ्य परंपरा एवं औषधि पादप बोर्ड द्वारा 15 मई को बोर्ड कार्यालय के सभाकक्ष में एक दिवसीय “वेटीवर फार्मिंग टेक्नोलॉजी” विषय पर छत्तीसगढ़ आदिवासी स्थानीय स्वास्थ्य परंपरा एवं औषधि पादप बोर्ड के अध्यक्ष, विकास मरकाम के अध्यक्षता में व बोर्ड के मुख्य कार्यपालन अधिकारी जे.ए.सी.एस. राव तथा छत्तीसगढ़ आदिवासी स्थानीय स्वास्थ्य परंपरा एवं औषधि पादप बोर्ड के मार्गदर्शन में कार्यशाला आयोजित की गई।

आयोजित कार्यशाला में वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. अनुज कान्ता, रिटायर्ड साइंटिस्ट, सी-मैप लखनऊ व डॉ. बी. सुब्बाराव, साइंटिस्ट, सी-मैप, हैदराबाद के द्वारा वेटीवर के कृषिकरण व इकोनॉमिक लाभ के बारे में विस्तृत व महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान की गई।

डॉ. अनुज कान्ता, रिटायर्ड साइंटिस्ट, सी-मैप लखनऊ द्वारा अपने प्रस्तुतीकरण में बताया गया कि वेटीवर एक ग्रास प्लांट है, जो सभी जलवायु क्षेत्र में जीवित रहता है तथा वेटीवर में भूजल पुनर्भरण की अद्भुत क्षमता होती है। साथ ही वर्षा जल के साथ मिट्टी को पकड़ कर रखती है, जिससे मिट्टी की पोषक तत्व का बहाव कम होता है।

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परंपरागत रूप से घास घास का उपयोग खेतों व नदी के किनारे किया जाता था लेकिन अब कटाव नियंत्रण की वैज्ञानिक विधि को लेकर इसके लाभ पर और अधिक ध्यान दिया जा रहा है। यह घास सूखा प्रतिरोधी, कीट प्रतिरोधी व जल प्रतिरोधी भी है, जो जलवायु परिवर्तन से होने वाले हानि को रोकने में अहम भूमिका निभाता है। वेटीवर की वर्तमान समय में बहुत से ऐसी किस्में तैयार की गई हैं, जिससे 10-12 माह में फसल तैयार किया जा रहा है। वेटीवर की 01 एकड़ में 1.5 टन सूखा जड़ प्राप्त होता है। | सूखे जड़ के 100 कि.ग्रा. जड़ से 1.5 कि.ग्रा. तेल प्राप्त होता है।

डॉ. बी. सुब्बाराव, साइंटिस्ट, सी-मैप, हैदराबाद द्वारा अपने प्रस्तुतीकरण में बताया गया कि वेटीवर की जड़ वार्षिक संरचना वाली होने के कारण बहुत मजबूत होती है। यह पहले वर्ष में 3 से 4 मीटर गहराई तक बढ़ सकती है। वेटीवर तो स्टोनल होने के ना होने के कारण इन विशेषताओं के कारण वेटीवर पौधा अत्यधिक सूखा को भी सहन कर सकता है, जो भू-जल संरचना को बनाए रखने में सहायक करता है।

1वेटीवर का तेल में मुख्य रूप से वेटीवरोल तत्व पाया जाता है। | सूखा जड़ का औसतन के लिए 48 से 78 घंटा लगते है। वर्तमान समय में वेटीवर तेल का मूल्य 15,000 से 20,000 प्रति लीटर है।जे.ए.सी.एस. राव, मुख्य कार्यपालन अधिकारी, छत्तीसगढ़ आदिवासी स्थानीय स्वास्थ्य परंपरा एवं औषधि पादप बोर्ड, रायपुर द्वारा पूरे कार्यशाला से होने वाले लाभ के संबंध में बताया गया, जिसमें –

1.छत्तीसगढ़ राज्य में वेटीवर रोपण से स्थानीय किसान व ग्रामीण क्षेत्रों के समुदायों को आर्थिक लाभ प्राप्त होगा, क्योंकि इनका रोपण अपेक्षाकृत सरल होने के साथ-साथ इनके जड़ों से तेल मिलने वाला तेल का बाज़ार मांग में उच्च वृद्धि हो रही है।

2.पौधा अत्यधिक ही सहनशील होने के कारण यह कम पानी वाले क्षेत्रों में भी आसानी से उग सकता है। इसे सिंचित व असिंचित क्षेत्रों में भी लगाया जा सकता है।

3.इसका सिंथेटिक मौलिकत्व नहीं होता इस कारण इसके तेल का उपयोग प्राकृतिक रूप से ही किया जाता है तथा इसलिए इसका कृषिकरण किया जाना आवश्यक है।

4.इसकी कृषिकरण पद्धति अत्यंत ही सरल व कम देखभाल वाली होती है तथा इसमें किसी भी प्रकार के उर्वरक एवं खाद की आवश्यकता नहीं होती है।

5.वेटीवर तेल की बाज़ार मांग एवं मूल्य अधिक है। वेटीवर की अपारंपरिक व ईत्र तथा उद्योगों में मांग अधिक है।

6.वेटीवर की अपारंपरिक व ईत्र तथा उद्योगों में मांग अधिक है।

7.औद्योगिक उपयोग में इसके जड़ों से तेल निकलता है, जिसे घास तेल के नाम से जाना जाता है जिसका उपयोग साबुन, औषधि निर्माण व सौंदर्य प्रसाधनों एवं एरोमा उद्योगों में भी किया जाता है।

8.लघु उद्योग एवं घरों में इसकी जड़ों का उपयोग चटाईयाँ बनाने, चारे के रूप में व पत्ताल के रूप में छप्पर निर्माण में किया जाता है। वेटीवर घास से टोकरियाँ, पाउच, खिड़की के आवरण, दीवार पर लटकने वाली वस्तुएं, छप्पर की छतें आमतौर पर इसके जड़ों से बनाई जाती है।

9.औषधि उपयोग में यह तकनीक और रक्त संचार संबंधी समस्याओं तथा पेट दर्द के लिए उपयोगी होते हैं।

इस बैठक में विकास मरकाम अध्यक्ष, छत्तीसगढ़ आदिवासी स्थानीय स्वास्थ्य परंपरा एवं औषधि पादप बोर्ड के कृषिकरण परियोजनाओं को छत्तीसगढ़ वासियों के लाभ के लिए प्रयास, औषधीय पौधों की खेती करने वाले एवं औषधीय पौधों के संग्रहण करने जन-सामान्य को खरीदे जाने वाले मूल्य से उन्हें अवगत कराकर, औषधीय पौधों की खेती करने के लिए प्रोत्साहित करने, छत्तीसगढ़ राज्य के वासियों को औषधीय पौधों के संरक्षण, संवर्धन एवं कृषिकरण से जोड़ते हुए आर्थिक दृष्टि से सक्षम बनाने के लिए निर्देशित किया गया। बैठक में छत्तीसगढ़ आदिवासी स्थानीय स्वास्थ्य परंपरा एवं औषधि पादप बोर्ड के मुख्य कार्यपालन अधिकारी जे. ए. सी. एस. राव तथा छत्तीसगढ़ आदिवासी स्थानीय स्वास्थ्य परंपरा एवं औषधि पादप बोर्ड के अधिकारी/कर्मचारी उपस्थित थे।

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