बस्तर | छत्तीसगढ़ में भाजपा ने आदिवासी मुख्यमंत्री का दांव खेलकर कांग्रेस के आदिवासी वोटबैंक (Bastar Politics Chhattisgarh) पर जबरदस्त तरीके से कब्जा करने का प्रयास किया है। कांग्रेस जो भाजपा को पूंजीपतियों की पार्टी बताती फिरती थी, सोशल इंजीनियरिंग के मामले में भाजपा से चारो खाने चित्त हो गई है।
अब कांग्रेस के पास उम्मीद के नाम पर सिर्फ बस्तर है जहां पिछली बार 2 लोकसभा सीटों में से एक में जीत दर्ज कर भाजपा को चौका दिया था। कांग्रेस यहां अपनी सेंटर लेफ्ट राजनीतिक विचारधारा के बलबूते फिर से खड़ा होने का प्रयास करेगी। चित्रकोट सीट से चुनाव हार चुके बस्तर से सांसद दीपक बैज को पुनः पीसीसी का अध्यक्ष बनाकर कांग्रेस ने इसका संकेत दे दिया है।
लेकिन इस बार बीजेपी ने भी बस्तर जीतने की खास रणनीति तैयार कर ली है। बस्तर (Bastar Politics Chhattisgarh) और कांकेर लोकसभा सीटों में कुल 16 विधानसभा सीटें आती है जिसमे बस्तर संभाग की 12, बालोद जिला की 3 और सिहावा विधानसभा शामिल है।
जिसमे से भाजपा और कांग्रेस ने 8-8 सीट पर जीत दर्ज कर दोनों लोकसभा के लिए असमंजस की स्थिति पैदा कर दी है । अब राज्य सरकार में मंत्री पद के द्वारा भाजपा आगामी लोकसभा चुनाव के लिए बस्तर और कांकेर में अपनी पकड़ मजबूत करने की तैयारी में है।
राज्य सरकार में मंत्री पद के दावेदार
आगामी लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए भाजपा का शीर्ष नेतृत्व मंत्री पद का बंटवारा कर सकती है। कांकेर लोकसभा सीट पर गोंड प्रत्याशी अक्सर उतारा जाता है ऐसे में एक बड़े गोंड नेता जैसे पूर्व मंत्री एवं सांसद विक्रम उसेंडी एवम भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष लता उसेंडी में से एक को मंत्री पद दे सकती है।
जबकि बस्तर लोकसभा सीट जिसमे 1998 से 2019 तक भतरा समुदाय का प्रत्याशी था और जहां भतरा समुदाय चुनाव मे निर्णायक भूमिका निभाता है उस समुदाय से भी एक मंत्री भाजपा बना सकती है। इसमें केदार कश्यप का नाम सबसे आगे है। 2019 में गैर भतरा समुदाय से आने वाले प्रत्याशी को टिकट दे कर चुनाव में नाराजगी झेल चुकी है। ऐसे में बस्तर के भतरा समुदाय को साधने का यह मौका बीजेपी नही गंवाना चाहेगी। (Bastar Politics Chhattisgarh)
बस्तर बीजेपी के लिए कितना मुश्किल?
विधानसभा चुनाव 2023 में 12 में से 8 सीटें जीतकर भाजपा ने सभी जानकारों को चौका दिया। रोचक बात तो ये कि बस्तर लोकसभा क्षेत्र से सांसद एवं प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष दीपक बैज विनायक गोयल से 8,370 वोटों के अंतर से हार गए। जबकि कवासी लखमा कोंटा से, विक्रम मंडावी बीजापुर से और लखेश्वर बघेल बस्तर से चुनाव जीत गए। दूर से देखने पर बस्तर(Bastar Politics Chhattisgarh) आदिवासी केवल आदिवासी बहुल क्षेत्र पढ़ा और जाना जाता है लेकिन आदिवासी भी आपस में विविधता रखते है। यदि बीजेपी इसमें सूझ बूझ भरा फैसला नहीं लेती है तो उसके लिए बस्तर मुश्किल हो सकता है।
बस्तर में जनजातीय समाज का उर्ध्वाधर विभाजन
बस्तर लोकसभा क्षेत्र में जो दक्षिण बस्तर के कई जिलों (कोंडागांव, नारायणपुर, बस्तर, जगदलपुर, चित्रकोट, दंतेवाड़ा, कोंटा, बीजापुर) को मिलाकर बनती है। वहां जनजातियों की कुल संख्या 16,54,356 है (2011 के जनगणना के आंकड़े अनुसार) जिसमे सर्वाधिक जनसंख्या गोंड समुदाय जिसमें गोंड, मुरिया, मारिया, बड़े माडिया आदि की है इनकी आबादी करीब 7,28,872 (2011 जनगणना आंकड़े अनुसार) है। दूसरे नंबर पर भतरा समाज है जो बस्तर में करीब 2,12,669 है और ये परंपरागत रूप से कश्यप परिवार के कारण भाजपा समर्थित है। तीसरे स्थान पर हल्बा समाज है जिनकी आबादी करीब 80,317 है।
बस्तर के स्विंग वोटर्स
कांग्रेस के गढ़ में सेंध लगाने का काम जब पहली बार बस्तर भाजपा के दिग्गज नेता स्व. बलिराम कश्यप ने की तभी से भाजपा समझ चुकी थी यहां भतरा समाज निर्णायक भूमिका में रहते है। उसके बाद लगातार कश्यप इस लोकसभा सीट से जीतते रहे। वे 12वी, 13वी, 14वी और 15वीं लोकसभा के सदस्य रहे। उन्हे बस्तर (Bastar Politics Chhattisgarh) का बालासाहब ठाकरे कहा जाता था।
अपने 75वीं जन्मदिवस के ठीक एक दिन पहले तक वे लोकसभा के सदस्य रहे एवम 75 वर्ष के उम्र में उनका निधन हो गया। 2011 उपचुनाव में उनके सुपुत्र दिनेश कश्यप को बीजेपी ने मैदान में उतारा वे विजयी रहे। 2014 में भी दिनेश कश्यप बीजेपी को बस्तर सीट जीताने में कामयाब रहे। हाल ही के चुनावी रैली में बलीराम कश्यप को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बस्तर में अपना राजनीतिक गुरु और मार्गदर्शक बताया था।
लेकिन 20 वर्षों के बाद भाजपा ने एक्सपेरिमेंट किया यह सीट भतरा समुदाय के उम्मीदवार को न देकर मुरिया समाज(गोंड समुदाय) से आने वाले नेता बैदूराम कश्यप को दिया और 40 हजार के बड़े अंतर से चुनाव हार गए।
एक तरफ जहां भाजपा ने 303 सीटें जीतकर पूरे देश में भाजपा की सुनामी पैदा कर दी थी। छत्तीसगढ़ के 11 में से 10 सीटें जीतकर नया कीर्तिमान स्थापित किया वहीं बस्तर में बीजेपी हार गई। एक हल्की सी चूक बीजेपी को इतनी भारी पड़ेगी भाजपा ने सोचा नहीं रहा होगा।
हालांकि बीजेपी ने विधानसभा चुनावों में इस अवधारणा और तथ्य को ध्यान में रखा कि बस्तर जीतना है तो गोंड समाज के साथ साथ गैर गोंड समाज के व्यक्ति को भी मंत्री बनाना ही होगा। 2003, 2008 एवं 2013 में डॉ. रमन सिंह मंत्रिमंडल में गैर गोंड समाज से आने वाले केदार कश्यप को मंत्री बनाकर भतरा समुदाय सहित पूरे आदिवासी समाज को बांधकर रखने का प्रयास भाजपा करती रही है। (Bastar Politics Chhattisgarh)
2023 में भी भाजपा अपने प्रदेश महामंत्री और पूरे बस्तर में सक्रिय रहने वाले केदार कश्यप को बड़ा मंत्रालय देकर बस्तर विकास की अपनी प्रतिबद्धता को जाहिर कर सकती है।
उत्तर बस्तर कांकेर लोकसभा सीट में गोंड समाज अहम
संघ और कल्याण आश्रम की मेहनत से सींची गई फसल को भाजपा अभी तक कांकेर लोकसभा क्षेत्र में काट रही है। इस विधानसभा में गोंड समाज ही निर्णायक है एवं बेदाग छवि जीत की गारंटी है। 1998 से 2014 तक इस सीट पर सोहन पोटाई सांसद रहे। 2014 में विक्रम उसेंडी एवम 2019 में मोहन मंडावी को यहां से विजय प्राप्त हुई है।
भाजपा ने बस्तर क्षेत्र उत्तर एवं दक्षिण दोनो को साधने के लिए लता उसेंडी को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाकर बड़ा दांव खेल दिया है परंतु आदिवासी समाज में उनकी कम सक्रियता भाजपा के लिए बाधा है।
इस क्षेत्र के एक और कद्दावर आदिवासी नेता विक्रम उसेंडी जो पूर्व में कई बार मंत्री पद पर रहे उन्हे भी बीजेपी बड़ी जिम्मेदारी देकर इस क्षेत्र में गोंड समुदाय को साधने की कोशिश करना चाहिए। इससे पूरे छत्तीसगढ़ के सबसे बड़े जनजातीय गोंड समुदाय को भाजपा खुश कर सकती है। (Bastar Politics Chhattisgarh)
प्रचंड लहर और सुनामी जैसे माहौल में भी जब बस्तर हार गए जो भाजपा की परंपरागत सीट थी ऐसे में भाजपा को एक-एक कदम बस्तर के विषय में फूंक फूककर रखना चाहिए। इससे पहले कि बस्तर के आदिवासी वोटर्स को कांग्रेस साध ले, भाजपा को मजबूत संदेश देना होगा। साथ ही बस्तर के बड़े गोंड नेता विक्रम उसेंडी को लोकसभा को ध्यान में रखकर भूमिका देनी होगी। महेश गागड़ा लगातार 2 बार चुनाव हार चुके है जिससे उनकी भी प्रासंगिता कम हुई है।
इन नेताओं को भी मिल सकती बड़ी जिम्मेदारी:
IAS से राजनीति में आए और केशकाल से धमाकेदार जीत दर्ज करने वाले नीलकंड टेकाम, चित्रकोट से पीसीसी अध्यक्ष और बस्तर के मौजूदा सांसद दीपक बैज को हराने वाले विनायक गोयल, भाजपा अजजा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष विकास मरकाम जिन्होने पूरे छत्तीसगढ़ में दौरे कर आदिवासियों के बीच भाजपा को खड़ा किया और चुनाव के दरमियान आदिवासी समाज की छोटी बैठकें तथा बस्तर और सरगुजा संभाग में आदिवासी विषयों को लेकर प्रेस कान्फ्रेस कर भाजपा को मजबूत किया। इसके अलावा कई नए चेहरों को बीजेपी आगामी मंडल कमीशन में स्थान देकर बस्तर को पूरी तरह लंबे समय के लिए कब्जे में कर सकती है। (Bastar Politics Chhattisgarh)
विष्णुदेव साय छत्तीसगढ़ के नए “देव” पढ़े बायोग्राफी